गंगा अवतरण कथा

गंगा अवतरण कथा

Mar 01, 2024Soubhagya Barick

- Meera Rai 
पौराणिक कथाओं के अनुसार  धरती पर गंगा का अवतरण भागीरथ जी के प्रयास के द्वारा ही संभव हो सका । मां गंगा पापविमोचनी हैं ,मंदाकिनी हैं , जान्हवी हैं , अर्थात इनको कई नामों से इस धरती पर पुकारा जाता है ।
ऐसी कथा है कि मां गंगा को उनकी बहन सरस्वती से किसी कारण एक श्राप मिला था। उन्होंने यह श्राप दिया कि तुम्हें मृत्युलोक जाना पड़ेगा। धरती पर जाकर वहां पर रहना होगा और सभी मनुष्यों के पापों को धोना पड़ेगा। 
धरती पर आने की बात सुनकर मां गंगा घबरा गईं । उन्हें यह सोचकर ही घबराहट हो गई थी कि पापी लोग उनके जल से
स्नान करेंगे और अपने पापों को वहां छोड़ कर चले जायेंगे।  वह सब मुझे अपने भीतर समाना पड़ेगा।  सबके मैल धोते-धोते वह परेशान हो जाएंगी । इस कारण उन्होंने बहुत अनुनय विनय किया मां सरस्वती से कि ,  मुझे धरती पर नहीं जाना है । मुझे ब्रह्मा जी के कमंडल में ही रहना है ।  जहां मैं आजाद हूं और कभी भी,  कहीं भी आ जा सकती हूं । 
 
उसी समय एक घटना घटी । कहते हैं कि हर घटना के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य छुपा होता है ।
 उस काल में एक बहुत ही प्रतापी व बलशाली राजा सगर राज्य करते थे। पूरी धरती पर उनकी शक्ति का लोहा माना जाए, इस कारण उन्होने अश्वमेध यज्ञ कराने की सोची। अपने साठ हजार पुत्रों को सैनिकों के साथ प्रत्येक दिशा में उस घोड़े को ले जाने का निर्देश दिए।
 
 उनकी दूसरी पत्नी से एक पुत्र और था । वह एक ऋषि था और उसका नाम असमंजस  था ।  उन्होंने पिता सगर  को चेतावनी दी कि इससे कोई अपशगुन भी हो सकता है लेकिन  राजा ने उनकी बात नहीं मानी और उन्हें वहां से चले जाने के लिए कहा ।
 
  जगह जगह राजा का पताका फहराने लगा।  इससे राजा इंद्र  को बड़ी परेशानी हुई । उन्हें अपना सिंहासन डोलता हुआ दिखाई दिया ।  उन्होंने इसे रोकने के लिए एक युक्ति सोची।  रात में जब  सब सो रहे थे और उनके पहरेदार घोड़ों की रक्षा कर रहे थे तब  इंद्रदेव ने कुछ ऐसी माया रची कि वे सब पहरेदार सो गए । इंद्र देव ने  उनका घोड़ा उठाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया ।
 
कपिल मुनि बरसों से वहां जंगल में तपस्या कर रहे थे । जब सैनिकों ने और उनके पुत्रों ने देखा कि घोड़ा वहां से नदारद है तो सभी दिशाओं में वे दौड़  पड़े । पता चला कि वह घोड़ा तो कपिल मुनि के आश्रम में बंधा हुआ है । वहां पहुंचकर राजकुमारों ने बिना कुछ सोचे, बिना कुछ जाने -  समझे  कपिल मुनि को अपशब्द कहना शुरू कर दिया ।
 
 कपिल मुनि का ध्यान भंग हुआ तो उन्हें क्रोध आ गया और उनके तेज से  वे सभी 60 , 000 पुत्र  अग्नि में जल उठे और भस्माभूत हो गए ।  यह खबर जब राजा सगर को पता चली तो तत्काल उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई ।
 
इस बात को जब ऋषि असमंजस को पता चली तब वे बहुत ही दुख में पड़ गए और कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उन्होंने बहुत अनुनय विनय की उनके साठ हजार भाइयों को मुक्त करने का ऋषिवर  कोई  उपाय बताएं नहीं तो , ये सभी यहीं  धरती पर भटकते ही रह जाएंगे ।
 
  कपिल मुनि ने अपने तेज के द्वारा यह बताया कि इनको तारने के लिए मां गंगा को धरती पर लाना पड़ेगा । एक वही हैं जो इनको तार सकती है , मुक्त कर सकती हैं । तब ऋषि असमंजस हिमालय पर चले गए और उन्होंने घोर तपस्या की लेकिन धीरे-धीरे उनका शरीर वहां पर छूट गया और वह उसी बर्फ में विलीन हो गए । फिर उनके पुत्र दिलीप ने इस साधना को करना शुरू किया , अपने पूर्वजों को उतारने के लिए । लेकिन वह भी काल कालवित हो गए और बर्फ में समा गए।
 
  जब राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ को यह बात पता चली तो उन्होंने भी मां गंगा के अवतरण की कृपा को प्राप्त करने के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी । उन्होंने ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया। भागीरथ की घोर तपस्या को देखकर मां पार्वती ने भी मां गंगा को समझाया कि वह अपनी जिद छोड़ दें और पुण्य कार्य को करें । तब मां गंगा ने कहा कि मैं धरती पर उतर तो जाऊं लेकिन मेरा वेग बहुत प्रचंड होगा जिसे संभालना धरती के बस की बात नहीं होगी । तब अनायास ही बहुत सारे जीव जंतु मारे जाएंगे । इसके लिए सिर्फ महादेव ही हैं जो मेरे वेग  को संभाल सकते हैं । तब भगीरथ ने  महादेव से प्रार्थना करी । महादेव ने प्रसन्न होकर माँ गंगा को अपने जटा में उतार लेना स्वीकार किया । महादेव ने फिर अपनी एक जटा को खोलकर गंगा की लहरों को धीरे धीरे धरती पर उतारा।

 माँ गंगा भागीरथ के पीछे पीछे चल पड़ी और कपिल मुनि के आश्रम पहुंच गयीं।  वहां पर सगर के साठ हजार पुत्रों को तार दिया।
इस प्रकार मां गंगा धरती पर आयीं और तब से पापियों का उद्धार करती चली आ रही है। कहते हैं कि इस प्रकार माँ सरस्वती द्वारा गंगा को दिया गया श्राप भी सिद्ध हो गया।

 

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