- Meera Rai 


हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर साल जेष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष के पास एकत्रित होकर विधि-विधान से पूजा-पाठ करती हैं।

वट सावित्री का व्रत और पूजन पति की लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है। साथ ही इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन भी सुखी बनता है। इस व्रत को करने से सुहागिन महिला को अखंड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त होता है।

वट सावित्री पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के साथ सावित्री, सत्यवान, वट वृक्ष और यमराज की भी पूजा की जाती है। लेकिन इस दिन पूजा के दौरान  सावित्री - सत्यवान की कथा सुनना या पढ़ना बेहद जरूरी होता है। क्योंकि इसके बिना वट सावित्री की पूजा अधूरी मानी जाती है।

 

वट सावित्री व्रत कथा _

कथा के अनुसार, मद्र नामक एक देश पर अश्वपति नाम का राजा राज करता था। उसकी कोई संतान नहीं थी, जिस कारण वह दुखी रहता था। उनके राज् में एक ऋषि महात्मा आए हुए थे। राजा ने उनका आदर-सत्कार किया और भोजन ग्रहण कराया। ऋषि महात्मा ने राजा से पूछा, हे राजन ,  "तुम्हारे पास सब कुछ होते हुए भी तुम दुखी क्यों हो ? "

 

इस पर राजा ने कहा कि, "मेरे पास सब कुछ तो है लेकिन मेरी कोई भी संतान नहीं है।"

 

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