पूजा में कलश का महत्व

पूजा में कलश का महत्व

Mar 15, 2024Soubhagya Barick

पौराणिक महत्व:

  हिंदू धर्म के सभी रीति रिवाजों तथा धार्मिक अनुष्ठानों में कलश स्थापना का बहुत ही महत्व माना जाता है। उसके भीतर हमारे ऋषि मुनियों ने संपूर्ण ब्रह्मांड की कल्पना की है और उसी चिंतन के कारण यह अत्यंत महत्वपूर्ण विधि विधान से निर्मित व स्थापित किया जाता है। 
ज्यादातर, तांबे के कलश का ही प्रयोग पूजन में करते हैं अन्यथा किसी भी धातु का कलश बनाया जा सकता है। मिट्टी का पात्र भी कलश के लिए उपयुक्त माना जाता है।

ये कुंभ अथवा घड़े के आकार का होता है जिसमें अभिमंत्रित जल भरा जाता है। जल भरते समय सभी दिव्य नदियों का आह्वान किया जाता है। 

पूजा विधि:

कलश के पात्र को पहले धोकर उसपर कुमकुम से स्वास्तिक बनाते हैं जो कि श्री गणेश व शुभ समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

कलश के जल में मंत्र पढ़ते हुए कुमकुम  डालते हैं। यह पवित्रता का द्योतक है। इसमें कुछ लोग सिक्का भी डालते हैं। इस प्रकार जल व धातु के संयोग से विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का निर्माण होता है।

कलश के मुख पर आम की पत्तियां लगाई जाती हैं। कुछ लोग पान की पत्तियों का भी इस्तेमाल करते हैं क्योंकि इन पत्तियों में ऑक्सीजन देर तक बना रहता है।
उसके पश्चात कलश के मुख पर लगी पत्तियों के ऊपर अभिमंत्रित नारियल की स्थापना करते हैं। नारियल को श्री फल भी कहा जाता है जो देवी को समर्पित माना जाता है। इसके भीतर भी जल होता है जो अत्यंत तरंगित होता है। कलश के गले में मौली  बांधी जाती है। इसे रक्षा सूत्र भी कहते हैं। यह दिव्य ऊर्जाओं को वलयाकार स्थिति में इर्द गिर्द बनाए रखता है।

इन सभी की एक साथ दिव्य उपस्थिति से ब्रह्मांडीय ऊर्जा की अभिव्यक्ति मानी जाती है। इसमें सभी नकारात्मक ऊर्जाओं को सोख लेने की अद्भुत शक्ति पैदा हो जाती है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है। शान्ति की स्थापना होती है जो किसी भी मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक होती है।

 

मंत्र और पूजा-अर्चना:

कलश की स्थापना मंदिर में करनी चाहिए जो कि ईशान कोण में स्थित हो। कलश के नीचे रोली, अक्षत रखकर उसपर कलश को विराजते हैं। फिर वरुण देवता का आह्वान करते हैं कि आप इस कलश में पधारकर हमारी रक्षा करें। कलश को ब्रहमंडीय शक्ति से युक्त करें। मंत्रों को पढ़ते हुए कलश पर रोली, अक्षत, चंदन, सुगंधि, पुष्प, माला इत्यादि से अर्चन, पूजन व अभिनंदन करें।

 मंत्र -

कलशस्य मुखे विष्णु: कंठे रुद्र: समाश्रित:
मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:।।
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुंधरा।
ऋग्वेदोअथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथवर्ण:।।
अंगैच्श सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:
अत्र गायत्री सावित्री शांतिपृष्टिकरी तथा।
आयांतु मम शांत्यर्थ्य दुरितक्षयकारका:।।
सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा:
आयांतु मम शांत्यर्थ्य दुरितक्षयकारका:।।

 इस प्रकार सभी अदिगुरुओं ने इस छोटे से किंतु अत्यंत दिव्य गुणों से युक्त कलश की महिमा को बताया और उसे हमारे धर्म में स्थापित किया। 

पूजा पाठ में पीतल के बर्तनों का महत्व

धार्मिक महत्त्व:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसर पूजा अर्चना के समय शुद्ध धातु का प्रयोग करना उत्तम होता है।
सबसे शुद्ध धातु सोना को ही माना जाता है। इसका रंग चमकदार पीला होता है जो कि वृहस्पति ग्रह और विष्णु भगवान का प्रतीक माना जाता है।
चूंकि सोना अत्यंत महंगा होता है इस कारण आम व्यक्ति इसका उपयोग नहीं कर पाते हैं।

पीतल का उपयोग
ब्रास या पीतल का रंग भी पीला होता है और यह भी सूर्य शक्ति का प्रतीक माना जाता है। अतः पीतल के बर्तनों का उपयोग पूजा पाठ तथा धार्मिक तथा मांगलिक प्रयोजनों में किया जाता है। साथ ही पीतल एक मजबूत धातु होता है इस कारण यह अत्यंत टिकाऊ भी होता है।
वैसे भी पीला रंग बहुत ही मांगलिक माना जाता है अतः पीले रंग के बर्तनों का उपयोग बहुतायत किया जाता है।

पूजा में उपयोग
भगवान विष्णु या श्री हरि को पीतांबर बहुत प्रिय है। पीले रंग और पीतल के बर्तनों में उनका आशीर्वाद माना जाता है।
पीला रंग वृहस्पति ग्रह का भी प्रतीक माना जाता है अतः जिनको गुरू तत्त्व या वृहस्पति ग्रह का दोष हो उन्हें तो अवश्य ही पूजा पाठ में पीतल के बर्तनों का उपयोग करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि वृहस्पति के प्रसन्न होने से ज्ञान व समृद्धि में वृद्धि होती है।

श्री गणेश जी को भी पीला रंग बहुत ही प्रिय है अतः उनका पूजन भी पीतल के पात्रों से किया जाना चाहिए। उनको और भगवान शिव जी को पीतल के बर्तन में भोग लगाना चाहिए।
मंदिरों में इसीलिए अगर सोने का कलश नही लग पाता है तो वहां पीतल के कलश स्थापित किए जाते हैं।
पीतल के कलशों से अभिषेक भी किया जाता है भगवान का। इस प्रकार पीतल के पात्रों का हिंदू धर्म में बहुत ही मान्यता है।

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