गणेश चतुर्थी की कहानी

गणेश चतुर्थी की कहानी

Mar 01, 2024Soubhagya Barick

- Meera Rai

गणेश चतुर्थी एक विशेष दिन है जब लोग भगवान गणेश के जन्म का जश्न मनाते हैं। यह भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा 

एक बार महादेव जी भोगावती नदी पर स्नान करने गए । उनके चले जाने के बाद पार्वती माता ने अपने तन के शुद्ध व चैतनयित मल से छोटे से बालक का एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाले। उसका नाम ‘गणेश’ रखा। पार्वती माता ने उस बालक से कहा कि " तुम द्वार पर बैठ जाओ और जब तक मैं नहा रही हूं किसी को अंदर मत आने देना।"

 

नदी में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव जी वहाँ पहुंचे तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया।  शिवजी ने बहुत समझाया पर गणेश जी नहीं माने। भगवान शिव वास्तव में क्रोधित हो गए और त्रिशूल का उपयोग करके उसका सिर काट कर  भीतर चले गए। बाद में जब माता पार्वती को पता चला कि क्या हुआ तो वह भी बहुत क्रोधित हुईं।

पार्वती माता बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने ब्रह्मांड को नष्ट करने की धमकी दी। उन्हें शांत करने के लिए, भगवान शिव ने अपने गणों को सबसे पहले जिस जीव को देखा, उसका सिर लाने के लिए भेजा। गणों ने उत्तर दिशा की ओर लेटे हुए एक हाथी को देखा। उन्होंने हाथी के सिर को लड़के के धड़ पर प्रत्यारोपित किया और उसे पुनर्जीवित कर दिया। तब शिव ने उनका नाम गणों का प्रमुख 'गणेश' रखा। 

 देवताओं ने गणेश जी को तमाम शक्तियां प्रदान की और प्रथम पूज्य बनाया। यह घटना भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुई थी इसलिए इस तिथि को पुण्य पर्व 'गणेश चतुर्थी' के रूप में मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी के दिन यदि आप व्रत रखते हैं और गणेश जी की कोई विशेष कथा सुनते या पढ़ते हैं तो कहा जाता है कि इससे आपके किए गए बुरे कामों से छुटकारा मिल सकता है और आपका जीवन बेहतर हो सकता है। गणेश चतुर्थी व्रत कथा व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली और जीवन में सुख समृद्धि लाने वाली बताई गई है।

इनका प्रिय भोग मोदक है। कहते हैं कि ,मोदक के साथ ही साथ उन्हें मोतीचूर के लड्डू बेहद पसंद हैं। गणेश चतुर्थी के दिन प्रात काल स्नानादि करके गणेश जी की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार विधि से पूजा करते हैं और दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाते हैं। इनमें से पांच लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों को दान में देते हैं। गणेश जी की पूजित  प्रतिमा को फिर एक उत्तम मुहूर्त में नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है। इस दिन गणपति पूजन करने से बुद्धि व रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति होती है और सभी विघ्न बधाई नष्ट हो जाती हैं।

क्यों नहीं देखते हैं इस दिन चंद्रमा?

बहुत समय पहले भगवान गणेश के बारे में एक कहानी प्रचलित है। हाथी का मुख होने के कारण उनका विशेष नाम गजानन पड़ा। गणेश अपने माता-पिता की परिक्रमा करते थे क्योंकि वे उन्हें ही अपनी दुनिया मानते थे और इसलिए वे प्रथम पूज्य बन गये।

 सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराते रहें उन्हें अपने सौंदर्य पर अभिमान था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमान वश उनका उपहास कर रहे हैं। क्रोध में आकर भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को काले होने का श्राप दे दिया। इसके बाद चंद्रमा को अपनी भूल का एहसास हुआ। जब चंद्रदेव ने भगवान गणेश से क्षमा मांगी तो गणेशजी ने कहा कि एक दिन चंद्रदेव सूर्य के समान पूर्ण और तेजस्वी हो जाएंगे। लेकिन चतुर्थी का यह दिन हमेशा चंद्रदेव को दंड देने वाले दिन के रूप में याद किया जाएगा।

इस दिन को याद कर कोई अन्य व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा। जो कोई व्यक्ति भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा,उस पर झूठा आरोप लगेगा।

भगवान श्री कृष्ण पर झूठा आरोप लगा था जब उन्होंने इस दिन चंद्र दर्शन किया था। 

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