Guru Gobind Singh Jayanti

गुरु गोविंद सिंह जी की शिक्षाएं - Guru Gobind Singh Jayanti 2024

Mar 14, 2024Soubhagya Barick

गुरु गोविंद सिंह सिख धर्म के नवें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे। गुरु गोविंद सिंह का जन्म पटना में हुआ था।  सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु माने जाने वाले गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती 17th जनवरी को मनाई जाती है।

गुरु गोविंद सिंह बचपन से ही अपनी उम्र के बच्चों से बिल्कुल अलग थे। जब उनके साथी खिलौने से खेलते थे तब गुरु गोविंद सिंह तलवार, कटार, धनुष इत्यादि से खेलते थे।

उनकी शिक्षा के आनंदपुर में हुई थी। उन्होंनेन्हों थोडे से समय में ही कई भाषाओं में महारत हासिल कर लिया था।

संवत् 1731 जब मुगल शासक औरंगजेब के अत्याचार बढते चले जा रहे थे तब उनकी उम्र मात्र नौ वर्ष की जब उन्होंने अपने पिता से कहा था कि," इस संसार में आपसे बड़ा महापुरुष कौन हो सकता है?" गुरु गोविंद सिंह बहादुरी और समझदारी वाली बातों से पिता का ह्रदय गर्व से भर जाता था। गुरू गोविंद सिंह बेहद ज्ञानी और वीर होने के साथ साथ दया, धर्म और त्याग की प्रतिमूर्ति थे। 

आपने खालसा पंथ की स्थापना की। सिक्ख धर्म के लोगों को अपने धर्म की रक्षा हेतु हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया।

गुरु गोबिंद सिंह जी एक जन्म जात योद्धा अवश्य थे लेकिन वो कभी भी अपनी सत्ता को बढाने या किसी राज्य को हासिल करने के लिए नहीं लड़े।

उन्हें राजाओं के अन्याय और अत्याचार से घोर चिढ़ थी। आम जनता या वर्ग विशेष पर अन्याय होते देखकर वो किसी भी राजा से लोहा लेने को तैयार हो जाते थे, चाहे वो शासक मुगल हो या हिंदू। गुरु गोबिंद सिंह जी ने औरंगजेब के अलावा, गढ़वाल नरेश और शिवालिक क्षेत्र के कई राजाओं के साथ तमाम युद्ध लडे।

गुरु गोबिंद सिंह जी वीरता को इन पंक्तियों से सिद्ध केरते थे – 

"सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं"

खालसा पंथ की स्थापना कब और कहां हुई?

गुरु गोबिंद सिंह जी ने 30 मार्च 1699 को आनंदपुर, पंजाब में अपने अनुयायियों के साथ मिलकर खालसा पंथ की स्थापना की जो राष्ट्र हित के लिए बलिदान हो जाने वालों का एक समूह था।

खालसा , फारसी का शब्द है,  खालसा का हिंदी अर्थ है खालिस यानि पवित्र। यहीं पर उन्होंनेन्हों एक नारा दिया 'वाहे गुरु जी का ख़ालसा, वाहे गुरु जी की फतेह'।

खालसा पंथ आज भी सिक्ख धर्म का प्रमुख पवित्र पंथ है। इस पंथ से जुड़ने वाले जवान लड़कों को अनिवार्य रूप से केश, कच्छा,कंघा, कड़ा और

कृपाण धारण करनी पड़ती है। सिक्ख धर्म के लोग 'वाहे गुरु जी का ख़ालसा, वाहे गुरु जी की फतेह' नारा बोलकर आज भी वाहे गुरु के लिए सब कुछ करने की सौंगधसौं खाते हैं।

महान कवि - गुरु गोबिंद सिंह

गुरु गोबिंद सिंह युद्ध कला के साथ साथ लेखन कला के भी धनी थे। उन्होंनेन्हों 'जप साहिब' से लेकर तमाम ग्रंथों में गुरु की अराधना की बेहतरीन रचनाएं लिखीं। संगीत की द्रष्टि से ये सभी रचनाएं बहुत ही शानदार हैं। सबद कीर्तन में बड़े सुरों के साथ इसे गाया जाता है। गोविंद सिंह जी ने कुछ नए और अनोखे वाद्य यंत्रों का अविष्कार भी किया था। 

गुरु गोबिंद सिंह द्वारा अविष्कारित किए गए 'टॉस' और 'दिलरुबा' वाद्य यंत्र आज भी संगीत के क्षेत्र में उम्दा माने जाने हैं।

गुरु गोबिंद सिंह जी के संदेश

गुरु गोबिंद सिंह जी ने हमेशा ही अपने अनुयायियों को इस बात का संदेश दिया कि भौतिक सुख सुविधाओं में मत उलझना । वाहे गुरु के लिए पीड़ित जनों की सेवा और रक्षा करना ।

कहते हैं कि, बचपन में एक बार उनके चाचा ने गुरु गोबिंद सिंह को सोने के दो कड़े भेंट किए थे, लेकिन खेलकूद के दौरान एक कड़ा नदी में गिर गया। जब उनकी मां जी ने उनसे पूछा कि वो कड़ा कहां फेंक दिया, तो उन्होंनेन्हों दूसरा कड़ा उतारकर नदी में फेंक दिया और कहा कि, यहां गिरा दिया। इसी से अंदाजा लगाया जाता है कि उनको भौतिक चीजों का मोह नहीं था।

गुरू गोबिंद सिंह जी के कुर्बानी 

गुरु गोबिंद सिंह जी को सर्वांश दानी कहा जाता है । अत्याचार और शोषण के खिलाफ लड़ाई में उन्होंनेन्हों अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। अपने पिता, मां और अपने चारों बेटों को उन्होंने खालसा के नाम पर कुर्बान कर दिया।

गुरू गोबिंद सिंह जी ने 7 अक्टूबर 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ में अपना शरीर छोड़ा था।

 

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